Wednesday, July 13, 2016

कैसे

इस उल्फत को बता हम छुपाये कैसे
जो भीतर नहीं बाहर नज़र आएं कैसे

                                                         सहराब है वो कमबख्त नहीं वो दरिया                                  *सहराब-मृगतृष्ण
नादान दिल को बात ये समझाए कैसे

हम खुद भटक गए हैं राहे उल्फत में
राह तुझको दिखाएँ तो दिखाएँ कैसे

घुट गया दम ज़माने के शोर गुल में
हाल दिल का बताएं तो बताएं कैसे

इस आग ने रूह राख कर दी मेरी
तेरा दामन बचाएं तो बचाएँ कैसे

काश तुम पढ़ पाते मेरी ख़ामोशी को
सदा दिल की सुनाएं तो सुनाएं कैसे

मुबाराक़ तुम्हें जन्नत के तंग दरवाज़े
कद अपना हम घटाएं तो घटाएं कैसे

नरेश मधुकर ©

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