मचा हैं चारों तरफ कैसा ग़दर यारों
नहीं लगता यह पहले सा शहर यारों
तिशनगी ऐ सियासत लहू से भी न बुझी
सूखने को है अब यह सुर्ख समंदर यारों
आजकल दिन भूखे और शामें कातिल
शुक्रे खुदा जो बेटी आ जाये घर यारों
रात सरहद पर कट गए सैकड़ों बेटे
वापस लाने है उनके भी सर यारों
जाने किस बेवजह झगडे में मधुकर
मेरे मुल्क को लग गयी है नज़र यारों
नरेश मधुकर
आजकल दिन भूखे और शामें कातिल
शुक्रे खुदा जो बेटी आ जाये घर यारों
रात सरहद पर कट गए सैकड़ों बेटे
वापस लाने है उनके भी सर यारों
मेरे मुल्क को लग गयी है नज़र यारों
नरेश मधुकर
©2014