Thursday, July 2, 2015

अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
जीवन का कोई गीत नहीं
टूट  गए वीणा के तार
अब शेष कोई संगीत नहीं

सब खोया हैं क्या पाया है
अपनों ने रंग दिखलाया हैं
ठगा गया है ऐसा मन
अब निभती कोई रीत नहीं

जाने क्या क्या कर जाते हैं
दुनियां को राह दिखाते हैं
फिर भी आदर्शो कि जग में
सदा हार हुई हैं जीत नहीं

अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं

जीवन भर नहीं पाते हैं
लुटा के सब कुछ जाते हैं
जब प्राण पखेरू उड़ जाएँ
शिलालेखों पे जी जाते है

इसीलिए मुझको यारों
ये दुनियां अब नहीं भाती हैं
छोड़ कर देव पुरुषों को जो
असुरों के पग लग जाती

तभी मैं हर क्षण कहता हूँ
बस खुद में सिमटा रहता हूँ
कि मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं

जय श्री कृष्ण

नरेश मधुकर
ज़िंदगी जलने का नाम है
कोई दुःख में जलता है
कोई सुख से जलता है
कोई प्यार की मीठी आग में जलता है
तो कोई जुदाई की आग में
एक दिन जब जल के सब कुछ
अंत तक पहुंचेगा
तो सिर्फ राख होगी
सिर्फ राख
उसमें भी भीनी सी महक
होगी
सिर्फ तुम्हारी .....

नरेश मधुकर
बड़ बेरहमी से
अपने अपने हिस्से की
ज़िंदगी मुझ में से  निकाल कर
चल दिए तुम सब
कोई खुश है
कोई परेशान
कोई भीड़ बसर
कोई वीरान
मेरा कोई दोष नहीं लेकिन
मैंने सब को दिया है
फिर भी
मैं वहीँ का वहीँ हूँ
वैसा का वैसा
तनहा .....

जय श्री कृष्ण

नरेश मधुकर
इन हसरतों को जब से पर लगे
तुझसे बिछड़ने का बस डर लगे
ज़रा और मोहलत दे ज़िंदगी
बिन उन के तनहा सफर लगे

अजब शुरुआत है रात की
बड़ी अपनी सी सहर लगे
तेरी मोहब्बत तो सनम
इक मीठा सा जेहर लगे

इन हसरतों को जब से पर लगे ....
ये सड़क
और ये रात
बहुत लम्बी है
बड़ी तनहा
लम्बाई का क्या है
लम्बी और तनहा तो
ये ज़िंदगी भी है
तुम्हारे बिन ...

नरेश मधुकर

रेनकोट

कुछ रिश्ते रेनकोट की तरह होते हैं।
जब भी गर्दिशें बरसती हैं
तब उस रेनकोट की याद आती हैं
ताकि कठिन वक़्त निकल जाए
नहीं तो
बुरा वक़्त निकल जाने पर
बस हालातों की दराज में
ऐसे रिश्ते
पड़े सड़ते रहते हैं ....
खैर
हम रेनकोट ही सही
कुछ तो काम आ रहे हैं ...

जय श्री कृष्णा
नरेश मधुकर

मैं कवि

मैं कवि
टूटे हुए बाँध के
दरवाज़े सा
नहीं रोक पा रहा हूँ
नफरत की बाड़
वो बाड़
जो कभी बहा कर
ले गयी थी
सैकड़ों मुफलिसों
के घर
सियासत का तालाब
भर चुका हैं
गरीबों के खून से
कौन रोके
किस किस को रोके
हे ईशवर
अब तू ही कुछ कर
अब तू ही कुछ कर
तू ही कुछ कर ....

जय श्री कृष्णा
नरेश मधुकर

यारों

नहीं होता सजदा न हमसे सलाम यारों
सियासत का झूठ बोलना काम यारों

जाने कैसे पूरा देश बेच देते हैं चंद लोग
अपने लिये पराया ज़र्रा भी हराम यारों

इस क़दर नंगे देखे हैं इन आँखों ने लोग
अब हमसे तो नहीं होती राम राम यारों

कहाँ क़दर है यहाँ अच्छे लोगों की
चमचे पाते है यहाँ ईनाम यारों

कया ज़रूरते गुफ़्तगू हैं इन कमज़रफों से
जो कहना होगा कह देंगे मेरे कलाम यारों

हम तो चले आये यह ज़ंजीरें तोड़कर
जाओ ढूँढो कोई और ग़ुलाम यारों 󾌵

नरेश मधुकर©

जायें क्यूँ ...

निखरें  सँवरें  सपने सजायें
तुम ही बताओ अब हम क्यूँ
आओगे तुम न वापस मुड़कर
फिर हम जीते ही जायें क्यूँ

दुनियाँ वहम सी लगने लगी है
रात कफन सी लगने लगी है
तेरी गली जब आ ही गये हैं
अब हम  जन्नत  जायें क्यूँ

कितने साहिल कितने सागर
और न जाने  कितने सुकून
ले बैठे हैं हम तो खुद ही को
किस किस को समझायें कयूँ

जी लूँ तेरे संग क़िस्मत नहीं हैं
मुक़्क़द्दर में तेरी सोहबत नहीं हैं
जिस आज का कोई कल ही नहीं है
उसको कल तक लाएं क्यों  ...

नरेश मधुकर ©

कैसे ...

बचा कुछ भी नहीं अब खुद को जलाएँ कैसे
जो हम है ही नहीं  कमबख्त नज़र आएं कैसे

हम तो खुद ही भटक गए हैं राहे उल्फत में
किसी  और को राह दिखाएँ तो दिखाएँ कैसे

चराग़े दामन ने  रूह राख कर दी है  मिरी
तेरी आग हम आखिर बुझाएँ तो बुझाएँ कैसे

घुट गया दम  इस ज़माने के  शोर में मधुकर
हाल दिल का किसी को बताएं तो बताएं कैसे

तुम्हे मुबारक हो ये जन्नत के तंग दरवाज़े
कद अपना अब हम  घटाएं  तो घटाएं कैसे

नरेश मधुकर ©