Wednesday, July 13, 2016

तुम भी साथ चलो

नहीं आसान सफ़र कुछ दूर तुम भी साथ चलो 
बड़ा मायूस शहर  कुछ दूर तुम भी साथ चलो


वो वादियां वो नज़ारे कि हम मिले थे जहां
फिर बुलाती वो डगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो



जानता हूँ नहीं तुम साथ उम्र भर के लिए 
फिर भी चाहता हूँ मगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

हर तरफ भीड़ है ,उस पर ये दिल तनहा 
यहीं पे ख़त्म सफ़र,कुछ दूर तुम भी साथ चलो

बेखुदी में हम हाल दिल का बयान करते रहें 
तुम ही न समझे मगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

फेर कर मूँह जब खड़ी थी ज़िन्दगी मेरी तरफ
तभी तुम आये नज़र कुछ दूर तुम भी साथ चलो

नहीं मरता कोई मधुकर  फिर प्यार करने से 
चलो आजमाए धीमा ज़हर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

नरेश मधुकर ©

कैसे

इस उल्फत को बता हम छुपाये कैसे
जो भीतर नहीं बाहर नज़र आएं कैसे

                                                         सहराब है वो कमबख्त नहीं वो दरिया                                  *सहराब-मृगतृष्ण
नादान दिल को बात ये समझाए कैसे

हम खुद भटक गए हैं राहे उल्फत में
राह तुझको दिखाएँ तो दिखाएँ कैसे

घुट गया दम ज़माने के शोर गुल में
हाल दिल का बताएं तो बताएं कैसे

इस आग ने रूह राख कर दी मेरी
तेरा दामन बचाएं तो बचाएँ कैसे

काश तुम पढ़ पाते मेरी ख़ामोशी को
सदा दिल की सुनाएं तो सुनाएं कैसे

मुबाराक़ तुम्हें जन्नत के तंग दरवाज़े
कद अपना हम घटाएं तो घटाएं कैसे

नरेश मधुकर ©

प्यार बहुत


जीने को चंद यार बहुत
ग़ैरत थोड़ीऔर प्यार बहुत

रख लो तुम सारा आँगन
अपने हिस्से दीवार बहुत

कितना गम को याद रखें
यादों की भरमार बहुत

जग तुम मुझसे जीत गए
अपने लिए तो हार बहुत

दिल न कभी लगायेंगे 
लुटा चुके घरबार बहुत

यारों हमको विदा करो
देख लिया संसार बहुत


नरेश मधुकर ©

Monday, July 11, 2016

हम बेरंग बेहतर ...


हम बेरंग बेहतर
हम बेरंग बेहतर
पीछे तो हटते नहीं
सच झूठ कह कहकर
हम बेरंग बेहतर ...
हम तैराक नहीं
तो कोई बात नहों
पार करेंगे दरिया
धारा में बहकर
हम बेरंग बेहतर ...
कोई भी आस नहीं
कुछ भी रास नहीं
तुझको दिखाएंगे हम
तेरे बिन रहकर
हम बेरंग बेहतर
हम बेरंग बेहतर ...
नरेश मधुकर©

सामने बैठे तो जैसे ...


सामने बैठे तो जैसे हम उन्ही के हो गए
बात करते थे वो अपनी हम उन्ही में खो गए
आपके के आने से पहले तप रही थी ज़िंदगी
आप आये तो लगा है शोले पानी हो गए
सदियों से सोये नहीं जगा रही थी गर्दिशें
आपके दामन में आकर चैन से हम सो गए
गेसुओं में आपके फँस गयी यह शाम भी
आपकी सोहबत में देखो क्या से क्या हम हो गए
लग ही जाते हैं अक्सर दाग़ है दाग़ों का क्या
आप जब सुन न सके हम महफ़िलों के हो गए
नरेश मधुकर ©

न करो


आ जाओ पास मेरे या मुझसे दूर रहो
यह रोज़ रोज़ आया और जाया न करो 
जो भी करो बस इतना एहसान करो
हो जाओ मेरे या फिर ग़ैर के ही रहो
कमी हो कोई मुझ में तो मुझी से कहो
गैरों से मेरा हाल ऐ दिल पूछा न करो
तुम्हें खुद के ही पैरों पे आगे बढ़ना हैं
किसी की भी आस पे ज़िंदा न रहो
कर गुज़रो जो भी दिल तुमसे कहता है
यूँ दुनियादारी में वक़्त ज़ाया न करो
ये सब सहराब मधुकर आकर गुज़र जाते हैं
आते की ख़ुशी जाने वाले का गम न करो 
नरेश मधुकर ©

आगे चलते हैं


लगाते हैं आग़ और खुद भी जलते है
पलकों के तले चंद ख्वाब पलते हैं
पानी की सतह पर मीठे से रिश्ते
साथ निभाते है उम्र भर चलते हैं
वफ़ा का अंजाम कल न जाने क्या हो
सोचकर रोज़ नए साँचें में ढलते हैं
ये रंग जाने कल मधुकर क्या रंग लाये
रिश्ते रोज़ रफ्ता रफ्ता रंग बदलते हैं
रूठना मनाना उनका फिर रूठ जाना
बहुत हुआ चलो अब आगे चलते हैं
नरेश मधुकर ©