Monday, July 11, 2016

नहीं होता


होता हैं सिर्फ सफ़र मुक़ाम नहीं होता
चंद रिश्तों का कोई नाम नहीं होता
दिल्लगी से शुरू दिल्लगी पर ख़तम
दिल लगाने से कोई काम नहीं होता
ये राहतें हैं आती हैं चली जाती हैं
राहतों का कोई अंजाम नहीं होता
दिल की बातें है दिल में ही दबा लेना
कुछ बातों का चर्चा आम नहीं होता
कुछ और पिला फिर और पिला साक़ि
सर चढ़ कर न बोले वो जाम नहीं होता
कैसे समझाएं तुझे अय बेदर्द *क़ासिद् *डाकिया
ज़िक्रे वफ़ा न हो वो पैग़ाम नहीं होता
कुछ तो रही गयी होगी बात कहीं
बेवजह कोई बदनाम नहीं होता
नरेश मधुकर ©

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