मैंने माना कि तेरी मंजिल नहीं मैं
पूछो ज़रा उनसे जिन्हें हासिल नहीं मैं
बैठ जाता हैं दिल यह सोचने भर से
तिरे ख़्वाबों में अब तक शामिल नहीं हैं
चल दिए वो दूर मुझसे बेरूख होकर
उनकी उल्फत के शायद क़ाबिल नहीं मैं
रहने दो खुश उनको 'मधुकर' मेरे बिन
जाने दो इतना भी संग दिल नहीं मैं
पराई सलीबें उठाई है अक्सर
कैसे समझाऊ तुमको कातिल नहीं मैं
नरेश मधुकर
©2014