अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
जीवन का कोई गीत नहीं
टूट गए वीणा के तार
अब शेष कोई संगीत नहीं
सब खोया हैं क्या पाया है
अपनों ने रंग दिखलाया हैं
ठगा गया है ऐसा मन
अब निभती कोई रीत नहीं
जाने क्या क्या कर जाते हैं
दुनियां को राह दिखाते हैं
फिर भी आदर्शो कि जग में
सदा हार हुई हैं जीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
जीवन भर नहीं पाते हैं
लुटा के सब कुछ जाते हैं
जब प्राण पखेरू उड़ जाएँ
शिलालेखों पे जी जाते है
इसीलिए मुझको यारों
ये दुनियां अब नहीं भाती हैं
छोड़ कर देव पुरुषों को जो
असुरों के पग लग जाती
तभी मैं हर क्षण कहता हूँ
बस खुद में सिमटा रहता हूँ
कि मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
जय श्री कृष्ण
नरेश मधुकर
जीवन का कोई गीत नहीं
टूट गए वीणा के तार
अब शेष कोई संगीत नहीं
सब खोया हैं क्या पाया है
अपनों ने रंग दिखलाया हैं
ठगा गया है ऐसा मन
अब निभती कोई रीत नहीं
जाने क्या क्या कर जाते हैं
दुनियां को राह दिखाते हैं
फिर भी आदर्शो कि जग में
सदा हार हुई हैं जीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
जीवन भर नहीं पाते हैं
लुटा के सब कुछ जाते हैं
जब प्राण पखेरू उड़ जाएँ
शिलालेखों पे जी जाते है
इसीलिए मुझको यारों
ये दुनियां अब नहीं भाती हैं
छोड़ कर देव पुरुषों को जो
असुरों के पग लग जाती
तभी मैं हर क्षण कहता हूँ
बस खुद में सिमटा रहता हूँ
कि मुझे किसी से प्रीत नहीं
अब मुझे किसी से प्रीत नहीं
जय श्री कृष्ण
नरेश मधुकर