कब रहा हैं कौन यहाँ किस की आस में
क़ैद हैं यह ज़िंदगी खाली गिलास में
जिनसे भी उम्मीद थी उनसे मिला नही
मिलता है मददगार अलग ही लिबास में
बह गयी नदी घर के पास से मिरे
भटक गए कूएँ ज़िंदगी कि प्यास में
भूल बैठे वो हमे समझ के कोई गैर
बिता दी हमने ज़िंदगी उनकी तलाश में
क़ैद हैं यह ज़िंदगी खाली गिलास में
जिनसे भी उम्मीद थी उनसे मिला नही
मिलता है मददगार अलग ही लिबास में
बह गयी नदी घर के पास से मिरे
भटक गए कूएँ ज़िंदगी कि प्यास में
भूल बैठे वो हमे समझ के कोई गैर
बिता दी हमने ज़िंदगी उनकी तलाश में
भटक जाओ कहीं तो पुकारना ज़रूर
चले आएंगे हम बस इक आवाज़ में
जा सको तो जाओ घर यार के मेरे
देख आना मेरा मक़बरा हैं पास में ...
नरेश मधुकर ©
देख आना मेरा मक़बरा हैं पास में ...
नरेश मधुकर ©