Wednesday, July 13, 2016

तुम भी साथ चलो

नहीं आसान सफ़र कुछ दूर तुम भी साथ चलो 
बड़ा मायूस शहर  कुछ दूर तुम भी साथ चलो


वो वादियां वो नज़ारे कि हम मिले थे जहां
फिर बुलाती वो डगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो



जानता हूँ नहीं तुम साथ उम्र भर के लिए 
फिर भी चाहता हूँ मगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

हर तरफ भीड़ है ,उस पर ये दिल तनहा 
यहीं पे ख़त्म सफ़र,कुछ दूर तुम भी साथ चलो

बेखुदी में हम हाल दिल का बयान करते रहें 
तुम ही न समझे मगर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

फेर कर मूँह जब खड़ी थी ज़िन्दगी मेरी तरफ
तभी तुम आये नज़र कुछ दूर तुम भी साथ चलो

नहीं मरता कोई मधुकर  फिर प्यार करने से 
चलो आजमाए धीमा ज़हर कुछ दूर तुम भी साथ चलो

नरेश मधुकर ©

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