लगाते हैं आग़ और खुद भी जलते है
पलकों के तले चंद ख्वाब पलते हैं
पलकों के तले चंद ख्वाब पलते हैं
पानी की सतह पर मीठे से रिश्ते
साथ निभाते है उम्र भर चलते हैं
साथ निभाते है उम्र भर चलते हैं
वफ़ा का अंजाम कल न जाने क्या हो
सोचकर रोज़ नए साँचें में ढलते हैं
सोचकर रोज़ नए साँचें में ढलते हैं
ये रंग जाने कल मधुकर क्या रंग लाये
रिश्ते रोज़ रफ्ता रफ्ता रंग बदलते हैं
रिश्ते रोज़ रफ्ता रफ्ता रंग बदलते हैं
रूठना मनाना उनका फिर रूठ जाना
बहुत हुआ चलो अब आगे चलते हैं
बहुत हुआ चलो अब आगे चलते हैं
नरेश मधुकर ©
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